कुछ और अलफ़ाज़

1.हर रोज गुजरता हूँ बेइंतहान दर्द से ,उसकी हंसी की खातिर,
जब रोती है रोज मेरे कंधे पे सर रख के,वो किसी और के खातिर |

2.बरी अजीब है जिंदगी की दस्तूर,कभी कुछ तो कभी कुछ और कहती है,
मैं सांस लूं तो सरेआम , तू कतल भी करे तो आवाज़ नहीं उठती |

3.कैसी ये रीत है जग की , ये कैसा है इन्साफ??
मैं करूँ तो फांसी, तू करे तो सात खून माफ़ |

4.गर यकीं ना हो मेरी मुहब्बत पे तुझको सनम,
ख़ुशी के पल न सही मुझे दर्द-ए-हाल  देना,
मन लेना  सारी जिंदगानी  की  किसी और के साथ,
बस मुझे अपनी जिंदगी की आखिरी साल देना |






जय श्री कृष्ण
MANISH ANAND