Friday, January 14, 2011

क्षमा-योग्य

आया था ठानकर ,
तेरे चरणों में सुमन जरुर चढाऊंगा ,
आज हे नाथ बरे   भाव से,
निर्मल सुन्दर गीत भी गाऊंगा,
पर ये क्या?
मंदिर में आते  ही ,
मेरे हाथ  क्यों थर-थर कांपने  लगे?
बताओ , बोलो हे प्रभु !
मेरे कंठ के स्वर कहाँ चले गए ?
क्या तू नहीं चाहता  के मैं तुझपर फूल चधाऊ?
तेरे चरणों में गिरकर मैं भक्ति-गीत गाऊं?
लगता है मुझसे कोई भयंकर भूल हुई ,
प्रभु , क्या मैं भी क्षमा करने योग्य नहीं?

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