Saturday, January 22, 2011

ठंड


अरे आज इस करक गर्मी में,
मुझे ठण्ड क्यूँ महसुश हो रही?
अरे मेरे हाथ-पैर ,
बर्फ के ढेर क्यों बने जा रहे?
क्यों जम रही है मेरी सांसें ?
कहीं आज कोई,
अपसकुन तो नहीं होने वाला?
संसार का अस्तित्व ,
आज इस क्षण तो नहीं खोने वाला?
बताओ ना,
मेघ आज अग्नि तो नहीं बरसाएंगी?
की ये निर्बोध जल,
समुन्दर बनकर तो नहीं छायेंगी?
कोई तो बोलो,
की कहीं धरती का कलेजा तो नहीं फटेगा?
कोई पर्वत आज अपने जगह से तो नहीं हटेगा?
बरा भयभीत हूँ मैं,
धरकन बंद होने को है,
रूह मेरी मुझसे,
हाँ, मुझसे ही खोने को है,
सुनना चाहता हूँ मैं,
कहीं छुटेगी तो नहीं ज्वालामुखी ?
होगी तो नहीं,
कोई महाशक्ति हमसे दुखी?
अरे सब मिलकर सोचो न,
जरा जोर लगाओ,
की इस करक गर्मी में,
मुझे ठण्ड क्यों महशुश हो रही?


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