प्राण हमारा आज करेगा खूब बाण का काज ,
डोर अनिल का बांधा है बस लगता है मजबूत ,
युद्ध क्षेत्र में निकल परा है आज भूमि का पूत |
रथ होगा अब साहश का औ अग्नि होंगे घोरे ,
दौराएगी इसको इच्छा , ये ही रथ को मोऱे ,
पीठ देखलो लड़ा हुआ है बांधे शक्ति अकूत ,
युद्ध क्षेत्र में निकल परा है आज भूमि का पूत |
घास -पात सब चरण धो रही , किरनें करती चन्दन ,
सब ख़ुशी-ख़ुशी हैं विदा कर रहे , कोई करे कहाँ है क्रंदन?
पंछी की बारात नें बांधा हैं कलाई पे सूत ,
युद्ध क्षेत्र में निकल परा है आज भूमि का पूत |
पर्वत का वो शिखर देखते, देंगी वो आशीष,
उद्वेलित करेंगी हमको,अब ये दही सब दीस ,
सब मिलकर इतिहाश गढ़ेंगे ,बिना छुआ और छूत,
युद्ध क्षेत्र में निकल परा है आज भूमि का पूत |
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