Friday, January 14, 2011

युद्ध की तैयारी

  छील -छील  कर  दिल का मैंने धनुष बनाया  आज,
प्राण हमारा  आज करेगा  खूब   बाण   का काज  ,
डोर  अनिल  का बांधा  है बस लगता है मजबूत  ,
युद्ध   क्षेत्र  में निकल  परा है आज भूमि  का पूत  |

रथ  होगा अब साहश  का औ अग्नि   होंगे     घोरे  ,
दौराएगी  इसको  इच्छा  , ये ही रथ  को मोऱे ,
पीठ  देखलो  लड़ा  हुआ है बांधे  शक्ति  अकूत ,
युद्ध   क्षेत्र  में निकल  परा है आज भूमि  का पूत  |

घास -पात  सब चरण  धो  रही , किरनें  करती  चन्दन ,
सब ख़ुशी-ख़ुशी हैं विदा  कर रहे , कोई करे कहाँ है क्रंदन?
पंछी की  बारात नें बांधा हैं कलाई पे सूत ,
युद्ध   क्षेत्र  में निकल  परा है आज भूमि  का पूत  |

पर्वत का वो शिखर देखते, देंगी वो आशीष,
उद्वेलित करेंगी हमको,अब ये दही सब दीस ,
सब मिलकर इतिहाश गढ़ेंगे ,बिना छुआ और छूत,
युद्ध   क्षेत्र  में निकल  परा है आज भूमि  का पूत  |





No comments:

Post a Comment