हर बार पलक ज्यों बंद करूँ ,
एक परी नजर आती मुझको ,
वो ऑंखें उसकी कजरारी ,
वो स्नेह छलकते लव उसके ,
फिर जाता मैं उसके समीप ज्यों ,
इठलाती वो पुष्प तरह ,
औ बलखाती , यु मटकाती ,
कुछ कहती है मुझको हँसकर ,
मैं हाथ बढ़ाता छूने को ज्यों ,
चिंगारी कुछ आती है ,
मेरे सपनों में आग लगा ,
वो छूमंतर हो जाती है ,
ज्यों सिखलाती हो वो मुझको ,
इन सपनों का कोई अर्थ नहीं ,
मुस्काने की मत सोचूं मैं ,
मैं रहूँ जहाँ है दर्द वहीँ |
No comments:
Post a Comment