Friday, January 14, 2011

मैं राम बनूँगा

माँ दे दो तुम एक तीर धनुष,
अब मैं भी राम बनूँगा,
इस दुनिया के हर रावन का,
मैं ही दमन करूँगा |

सुना है के यह धरती  अब,
 पापी से बरी लदी है,
हर नगरी में,हर कसबे में ,
पाप की नदी बही है ,

माँ पाप की बहती धारा का ,
अब मैं ही विलय करूँगा,
इस दुनिया के हर पापी का,
मैं ही प्राण हरूँगा |

कई-कई अब जनक पुत्रियाँ ,
लुटी क्रूर रावन के हाथ,
सुख-सम्मान कहाँ है,
बस कलंक  है उनके माथ,

माँ हर सीता  को दुशचंगुल से,
अब मैं ही खिंच सकूँगा,
उस कपटी,वेहसी रावन का,
मैं ही बाहू धरूँगा |

मात-पिता इस  कलयुग में,
हुए हैं घोर उपेक्षित ,
आज्ञा-मान  न करे पुत्र,
होकर भी वो है शिक्षित  ,

मात-पिता की  खातिर   माँ ,
मैं भी विषपान करूँगा,
उन देव- तुल्य इंसानों का,
मैं ही दुःख  दूर करूँगा |

समय हुआ ऐसा के ,
ऊंच-नीच में बरी है भेद,
मैं क्या बोलू, देख इसे ,
मुझको होती है खेद,

ऊंच -नीच का भेद मैं माँ,
चुटकी मैं ख़त्म करूँगा ,
इस दुनिया की हर सबरी का,
झूठन  हो ख़ुशी चखुंगा |

है सुखी नहीं कोई भी अब,
सब हुएं हैं दुःख से त्रस्त
एक पल का है आराम नहीं ,
सब बारे अस्त औ व्यस्त ,

गर कस्ट किसी को होगा  तो ,
माँ मैं भी अब रो दूंगा,
इस दुनिया के कल्याण   को माँ,
मैं भी निश्चित यज्ञ करूँगा |




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