अब मैं भी राम बनूँगा,
इस दुनिया के हर रावन का,
मैं ही दमन करूँगा |
सुना है के यह धरती अब,
पापी से बरी लदी है,
हर नगरी में,हर कसबे में ,
पाप की नदी बही है ,
माँ पाप की बहती धारा का ,
अब मैं ही विलय करूँगा,
इस दुनिया के हर पापी का,
मैं ही प्राण हरूँगा |
कई-कई अब जनक पुत्रियाँ ,
लुटी क्रूर रावन के हाथ,
सुख-सम्मान कहाँ है,
बस कलंक है उनके माथ,
माँ हर सीता को दुशचंगुल से,
अब मैं ही खिंच सकूँगा,
उस कपटी,वेहसी रावन का,
मैं ही बाहू धरूँगा |
मात-पिता इस कलयुग में,
हुए हैं घोर उपेक्षित ,
आज्ञा-मान न करे पुत्र,
होकर भी वो है शिक्षित ,
मात-पिता की खातिर माँ ,
मैं भी विषपान करूँगा,
उन देव- तुल्य इंसानों का,
मैं ही दुःख दूर करूँगा |
समय हुआ ऐसा के ,
ऊंच-नीच में बरी है भेद,
मैं क्या बोलू, देख इसे ,
मुझको होती है खेद,
ऊंच -नीच का भेद मैं माँ,
चुटकी मैं ख़त्म करूँगा ,
इस दुनिया की हर सबरी का,
झूठन हो ख़ुशी चखुंगा |
है सुखी नहीं कोई भी अब,
सब हुएं हैं दुःख से त्रस्त
एक पल का है आराम नहीं ,
सब बारे अस्त औ व्यस्त ,
गर कस्ट किसी को होगा तो ,
माँ मैं भी अब रो दूंगा,
इस दुनिया के कल्याण को माँ,
मैं भी निश्चित यज्ञ करूँगा |
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