कुछ लोग मुझे कहते है अब ,
क्यूँ रोता है तू रह- रह कर ,
क्या हार गया तेरा ये मन ,
इस दुनिया की दर्दें सहकर ,
तो बोल उठा मैं उनसे फिर ,
आ बैठ मेरे आगे आकर ,
दो अश्क बहाकर देखो तुम ,
क्या चलता है दिल के भीतर ,
क्या समा तुम्हारे अन्दर भी ,
जलने लगती यु धू -धू कर ,
वो अश्क तुम्हे ठंडक देती ,
क्या मरहम की पुरिया बनकर ?
भाई साथ मेरे दो अश्क बहा ,
फिर पायेगा तू ये निश्चित ,
हर दर्द तेरे बह जायेंगे ,
तब खुशियों की आंधी बनकर |.
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